हाई बीपी और हार्ट के मरीजों को नहीं करना चाहिए कपालभाति प्राणायाम
योग गुरु सुनील सिंह
योग की महत्ता अब जगजाहिर है। भारतीय मनीषियों द्वारा सौंपी गई ये अनमोल थाती एक बार फिर भारतीय जनमानस को प्रेरित करने लगी है। मगर आज भी सबसे बड़ी समस्या है योग अथवा प्राणायाम करने में योग्य गुरु का अभाव। इसकी वजह से लोग गलत तरीके से योग और प्राणायाम करते हैं जो कि शरीर को लाभ पहुंचाने की जगह पर नुकसान पहुंचाता है। उदाहरण के लिए हम कपालभाति प्राणायाम को लें। इस प्राणायाम से शरीर को अनगिनत लाभ मिलते हैं।
लाभ व प्रभाव
इस प्राणायाम के अभ्यास से नाक, गले एवम् फेफड़े की सफाई होती है, चेहरे पर कांति, लालिमा और ओज आता है। इसे करने से चेहरे की झुर्रियां, दाग, फुन्सी आदि दूर होते हैं। कपालभाति प्राणायाम से ईडा नाड़ी और पिंगला नाड़ी की शुद्धि होती है। दमा, तपेदिक, टॉन्सिल आदि विकार दूर हो जाते हैं। महिलाओं में गर्भाशय के विकार, मासिक धर्म संबंधी कठिनाइयां और गर्भाशय जनित दोष दूर होते है। यह प्राणायाम पाचन तंत्र को मजबूत बनाता है तथा नर्वस सिस्टम में संतुलन लाता है। इससे कपाल की नस-नाड़ियों की शुद्धि होती है, इसलिए इसके अभ्यास से ध्यान की एकाग्रता बढ़ती है, जिससे व्यक्ति तनावमुक्त होता है।
क्या अर्थ है इस प्राणायाम का
कपाल माने माथा और भाति का अर्थ है रोशनी, ज्ञान व प्रकाश। योगियों ने कहा है कि इस प्राणायाम से हमारे मस्तिष्क या फिर सिर के अग्र भाग में रोशनी प्रज्जवलित होती है और हमारे अग्र भाग की शुद्धि होती है। कपालभाति प्राणायाम षटकर्म की क्रिया के अन्तर्गत भी आता है। इसे कपाल शोधन प्राणायाम भी कहा जाता है।
विधि
जमीन पर पद्मासन या फिर सुखासन की अवस्था में बैठे फिर पूरे बल से नासिका से सांस को बाहर फेंके, श्वास को लेने का प्रयास न करें, श्वास स्वतः आ जाएगा। जब हमारा श्वास बाहर निकलेगा उसी समय हम अपने पेट को अंदर की ओर लेंगे। पहले धीरे-धीरे इसका अभ्यास करें, उसके बाद धीरे-धीरे श्वास छोड़ने और पेट के संकुचन की गति बढ़ा दें। शुरू-शुरू में नए अभ्यासी कम से कम 20 चक्रों का अभ्यास करें। एक सप्ताह उपरांत 50 चक्रों तक अभ्यास को बढ़ा दें। ध्यान रहे कमर और गर्दन सीधी हो, आंखें बंद (या खोलकर भी अभ्यास कर सकते है) हो। दोनों हाथ ज्ञान मुद्रा में हो।
सावधानियां
हृदय रोगी, उच्च रक्तचाप के रोगी, मिर्गी स्ट्रोक, हार्निया और अल्सर के रोगी तथा गर्भवती महिलाएं इसका अभ्यास ना करें।
विशेष
चक्कर आने या फिर सरदर्द की स्थिति में कुछ देर आराम करें और पुनः इसका अभ्यास करें। इसे करते हुए हर दिन कम से कम 15 गिलास पानी अवश्य पियें।
(योग गुरु सुनील सिंह की किताब योग की छाया बदले आप की काया से साभार)
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